संविधान सभा में आदिवासी सदस्य
आज हम भारत का 75वाँ गणतंत्र दिवस मना रहे। पर हम आदिवासियों के लिये, हमारे हक-अधिकार, आरक्षण, वोटिंग पॉवर व संवैधानिक अधिकार मिले कैसे। हमारे कितने हिमायती संविधान सभा के सदस्य थे। आइए हम उन आदिवासी पैरोकारों के बारे में जाने जो आदिवासी समुदाय से आते थे।
1. मरांग गोमके’ डॉ. जयपाल सिंह मुंडा (समुदाय – मुंडा)
महान आदिवासी, संविधान सभा में आदिवासी अधिकारों के सबसे बड़े पैरोकार, महान स्वंतत्रता सेनानी, 1928 ओलंपिक में भारत को गोल्ड दिलाने वाली भारतीय हाकी टीम के प्रथम कप्तान, हॉकी के महानतम खिलाड़ियों में से एक, पहले आदिवासी आइसीएस, ऑक्सफोर्ड ब्लू के विजेता, झारखंड आंदोलन के नेता, जननायक, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद्, कुशल प्रशासक व जन्मजात लीडर। 5वीं अनुसूची, आदिवासी आरक्षण व संवैधानिक आदिवासी अधिकारों के मसीहा। ताउम्र आदिवासी अधिकारों, अस्मिता एवं पहचान के लिए संघर्ष।
2. रेवरेंड’ जेजेएम निकोलस रॉय (समुदाय – खासी)
महान स्वतंत्रता सेनानी, जननेता, संविधान सभा सदस्य, भारतीय संविधान के 6वीं अनुसूची, आर्टिकल 371 व ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के पितामह। वे नोंगखला सिम्सशिप के शहीद यू तिरोत सिंह के पोते थे। 1918 में यूनाइटेड फ्रूट कंपनी की स्थापना, जो आदिवासी लोगों के लिए एक संयुक्त स्टॉक सहकारी थी। 1921 में असम गवर्नर काउंसिल में पहले आदिवासी प्रतिनिधि, अफीम का सेवन, तम्बाकू धूम्रपान और मादक और अन्य नशीले पेय पीने के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। असम विधान सभा के सदस्य। असम मंत्रिमंडल में मंत्री। असम को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने के मुस्लिम लीग के प्रयासों का विरोध किया। आदिवासी अधिकारों व वंचितों के पूरोधा।
3. संविधान पुरुष’ ठाकुर रामप्रसाद पोटाई (समुदाय – गोंड)
महान स्वतंत्रता सेनानी, वकील व श्रम कानून के जानकार, खिलाड़ी, जननायक, बस्तर का गांधी। संविधान सभा का सदस्य। आदिवासी अधिकारों के लिए संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका। बदराटोला जंगल सत्याग्रह व द्वितीय विश्व-युद्ध के समय, कांकेर में अंग्रेजी उत्पीड़न के विरुद्ध किसान आंदोलन के नायक। सुभाष चन्द्र बोस समर्थक। कांकेर नगरपालिका के सदस्य। कैबिनेट मिशन योजना के सदस्य। 1946 में कांकेर रियासत-किसान सभा का गठन, पोटाई ने रियासती विलय के मसले को संविधान सभा में प्रखरता से उठाया, मध्य भारत के रियासत विलयीकरण के नायक। संविधान मामलों के विद्वान व प्रारूप समिति के सदस्य। 1950 में कांकेर के प्रथम सांसद व भानुप्रतापपुर के प्रथम विधायक। जमींदारी उन्मूलन एवं भूदान आंदोलन में जुड़ाव। गरीब बच्चों की पढ़ाई में मदद। आदिवासी व वंचितों के विकास हेतु कार्य।
4. ठाकुर फूलभान शाह (समुदाय – गोंड)
फूल भानु शाह का जन्म 1911 में हुआ था। वे गोंड आदिवासी समुदाय से थे। ठाकुर उदय भानू शाह, एम.एल.ए., परताबगढ़-हर्रई एस्टेट, छिंदवाड़ा, सी.पी., के जागीरदार, उनके बड़े भाई थे। ठाकुर फूल भानु शाह परताबगढ़-हर्रई एस्टेट के प्रभारी अधिकारी थे। वह ढल्ला एस्टेट के मालिक और जिला परिषद, छिंदवाड़ा के सदस्य भी थे। उनकी शिक्षा रायपुर के राजकुमार कॉलेज में हुई। वह प्रथम श्रेणी के बड़े खेल शिकारी, एथलीट और खिलाड़ी थे। वे व्यावहारिक प्रशासक, कृषक, पशुपालक और किसान थे।
ठाकुर फूल भानु शाह एक कुशल प्रशासक थे। चिकित्सा सहायता, पशु चिकित्सा सेवाएँ, प्राथमिक शिक्षा, पिछड़े आदिवासियों को छात्रवृत्तियाँ इस जागीरदारी प्रशासन की एक विशेष विशेषता थी। फूल भानु शाह कांग्रेस अथवा ठक्कर से जुड़े हुए थे। इसीलिए उन्हें ‘असम को छोड़कर आदिवासी क्षेत्र की उपसमिति’ का सदस्य बनाया गया था जिसके अध्यक्ष ए. वी. ठक्कर थे। बाद में तामिया विधानसभा से पहले विधायक बने।
5. रुपनाथ ब्रह्मा (समुदाय – बोडो)
रूपनाथ ब्रह्मा का जन्म 15 जून, 1902 को आसाम के कोकराझार जिले के ओवाबारी गांव में हुआ था। वह एक बोडो कवि, राजनीतिज्ञ, विद्वान व महान समाज सुधारक थे। वह बोडो समुदाय से पहले वकील, विधायक, मंत्री और असम मंत्रिमंडल में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले आदिवासी मंत्री थे। उन्होंने 1918 में बोरो स्टूडेंट्स एसोसिएशन का आयोजन किया। वह स्थानीय बोर्ड, धुबरी के सदस्य बने। उन्होंने ग्रामीण जनता के उत्थान के लिए अनेक विकास कार्य किये। वह संविधान सभा की अल्पसंख्यक उप-समिति और जनजातीय उप-समिति के सदस्य, 1937 से 1967 तक असम विधान सभा के सदस्य व मंत्री रहे। 1967 में उन्हें सांसद चुना गया। उन्होंने बोडो और अन्य आदिवासी समुदायों के विकास की दिशा में काम करने के लिए सामाजिक कल्याण गतिविधियाँ शुरू की।
उन्हें सांप्रदायिक शांति और सद्भाव का प्रतीक माना जाता था। उन्होंने इस तथ्य को समझा कि लोगों के बीच आत्मीयता के लिए संस्कृति पहली आवश्यकता है और इसलिए सभी के बीच एकता बनाए रखने के लिए संस्कृति का संरक्षण मुख्य लक्ष्य होना चाहिए।
6. धरणीधार बसुमतारी (समुदाय – बोडो)
धरणीधार बसुमतारी एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिनका जन्म 1914 में ग्राम-दलाईगांव, जिला-गोलपाड़ा, असम में हुआ। वह महान स्वतंत्रता सेनानी थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय में शिक्षा के दौलान 1942 के राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के कारण कारावास की सजा के कारण पढ़ाई अधूरी। वह 1945-50 तक गुहाटी स्थानीय बोर्ड के सदस्य, 1946-57 तक असम विधान सभा के सदस्य रहे। वह असम में कांग्रेस पार्टी, विधान सभा के सचेतक भी थे। वह संविधान सभा के सदस्य थे। रूपनाथ ब्रह्म आसाम की समतल भूमि की कबाइली आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करते थे। उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में पंचायतों और स्कूलों, औषधालयों और सहकारी समितियों की स्थापना की। उन्हें 1959 में जनजातीय कल्याण के लिए केंद्रीय सलाहकार परिषद द्वारा घुमंतू जनजातीय जांच समिति में सदस्यों में से एक के रूप में नामित किया गया था। 1960 में राष्ट्रपति द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति आयोग में सदस्यों में से एक के रूप में भी नामित किया गया, 1957 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए केंद्रीय छात्रवृत्ति बोर्ड के सदस्य के रूप में नामित किया गया, आदिवासी कल्याण के लिए केंद्रीय सलाहकार परिषद में सदस्य के रूप में नामित किया गया। दिसंबर, 1968 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण पर संसदीय समिति के अध्यक्ष नियुक्त किये गये।
7. देवेंद्र नाथ सामंता (समुदाय – मुंडा)
पद्मश्री देवेन्द्र नाथ सामंत संविधान सभा के सदस्य और अनुभवी मुंडा नेता थे। बहिष्कृत और आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र उप-समिति (असम को छोड़कर) के सदस्य थे। उनका जन्म सन् 1900 में झारखंड के सिंघभूमि जिले में हुआ था। वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और कई बार गिरफ्तार किये गये। वह एक वकील भी थे, उन्होंने सन् 1925 के चाईबासा के बार एसोसिएशन का सदस्य बन कर जिला अदालत में वकालत कि शुरूआत की। 1927, 1930 और 1933 में वे सिंहभूम जिले के नॉन मोहम्डन रूरल निर्वाचन क्षेत्र से बिहार एवं उड़ीसा विधान परिषद के सदस्य चुने गये। 1946 से 1950 तक वे बिहार लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे। उन्होंने भारत के आदिवासी व वंचितों के उत्थान के लिए सदैव प्रयास किया।
8. बेनीफेस लकड़ा (समुदाय – उरांव)
बोनीफेस लकड़ा का जन्म लोहरदगा जिले के कुडू प्रखंड के दोबार गांव में चार मार्च, 1898 में हुआ था। बेनीफॉस लकड़ा ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। वह एक शिक्षक, महान स्वतंत्रता सेनानी, संविधान सभा सदस्य, विधायक व जननेता थे। रांची के संत जॉन स्कूल में कुछ समय तक शिक्षक के रूप में कार्य किया। कुछ वर्षों तक आकाशवाणी, रांची से भी जुड़े रहे। इन्होंने छोटानागपुर व संताल परगना के आदिवासियों के लिए सुरक्षा प्रावधानों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्होंने वकील के तौर पर अपना कैरियर शुरू किया था और शोषित आदिवासियों को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ते रहे। उन्होंने संविधान सभा में छोटानागपुर प्रमंडल (रांची, हजारीबाग, पलामू, मानभूम, सिंहभूम) व संथाल परगना को मिला कर स्वायत्त क्षेत्र बनाने, इसे केंद्र शासित राज्य का दर्जा देने, सिर्फ आदिवासी कल्याण मंत्री की नियुक्ति, जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) के गठन की समय सीमा तय करने, 5वीं अनुसूची क्षेत्र में सभी सरकारी नियुक्तियों पर टीएसी की सलाह व उसके अनुमोदन, विशेष कोष से अनुसूचित क्षेत्रों के समग्र विकास की योजनाएं लागू करने और झारखंडी संस्कृति की रक्षा की पुरजोर वकालत की थी। 1937 में रांची सामान्य सीट से विधायक (बिहार प्रोविंसियल असेंब्ली के सदस्य) चुने गये, जबकि यहां की अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीट कांग्रेस के खाते में गयी वह 1946 से 1951 तक बिहार सरकार में एमएलसी व पार्लियामेंट सेक्रेटरी भी रहे।
9. मयांग नोकचा (समुदाय – नागा)
पद्मश्री मयांग नोकचा अओ (1901-1988) नागालैंड के एक भारतीय शिक्षाविद्, लेखक और नागा राष्ट्रीय परिषद के संस्थापक, उपाध्यक्ष थे। उनका जन्म नागालैंड के चांगकी गांव में हुआ था। वह नागा समुदाय की अओ उपजनजाति से। वे पहले अओ स्नातक थे। इम्पुर मिशन ट्रेनिंग एमई स्कूल के पहले नागा हेडमास्टर थे। 1948 में, उन्हें सरकारी हाई स्कूल मोकोकचुंग के प्रधानाध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। ब्रिटिश सरकार ने 1945 में मयांगनोक्चा को ‘वीरता का प्रमाण पत्र’ और भारत सरकार ने उन्हें 1964 में राष्ट्रपति के ‘सर्वश्रेष्ठ शिक्षक’ पुरस्कार से सम्मानित किया।
10. स्नेह कुमार चकमा (समुदाय – चकमा)
स्नेह कुमार चकमा, एक महान चकमा नेता, क्रांतिकारी, समाजवादी, स्वतंत्रता सेनानी, बौद्ध दार्शनिक, पत्रकार, आदिवासी कार्यकर्ता, राजनेता और बुद्धिजीवी थे। संविधान सभा बहिष्कृत और आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र (असम के अलावा) उप-समिति में शामिल किया गया। चकमाओं के एक भूले हुए नेता ने, 1947 के रैडक्लिफ अवार्ड द्वारा भारत के विभाजन के दौरान चटगांव पहाड़ी इलाकों के लोगों के साथ हुए अन्याय से लड़ते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया, जब चटगांव पहाड़ी इलाकों को अन्यायपूर्ण ढंग से पाकिस्तान को आवंटित कर दिया गया था, यहां तक कि चटगांव पहाड़ी ट्रैक्ट्स के लोगों को भी भारत के साथ एकजुट होना चाहते थे। चकमा समुदाय को विभाजन के सबसे बुरे पीड़ितों में से एक कहा जाता है। 25 सितम्बर, 1947 को संविधान सभा में तब जयपाल सिंह मुंडा ने कहा था कि भारत सरकार को चटगांव पहाड़ी इलाकों पर वापस दावा करना चाहिए। उनके संबंध में रैडक्लिफ पुरस्कार में बदलाव किया जाना चाहिए। पर ऐसा हो न सका। उनके प्रसिद्ध तीन सिद्धांत “एकजुट रहें, निर्णय लें, अस्तित्व के लिए अपने संघर्ष में स्थिर रहें”!
- को-एडॉप्टेड आदिवासी मेंबर
शायद उन्होंने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया है कि 212 सदस्यों वाले सदन में से आपको 15 का चुनाव करना होगा और यदि किसी समूह में केवल चार या पांच सदस्य हैं, तो उसे बिल्कुल भी प्रतिनिधित्व नहीं मिल सकता है। उस समूह के एक सदस्य को आवश्यक कोटा मिल सकता है और उस समूह के लिए समिति में सीट पाना संभव नहीं होगा। उस छोटे से अल्पसंख्यक को प्रतिनिधित्व देने का एकमात्र साधन या तो राष्ट्रपति द्वारा नामांकन या सह-विकल्प होगा। संविधान सभा में 3 आदिवासी को-एडॉप्टेड मेंबर थे।
1. केज़ेहोल अंगामी
नागा राष्ट्रीय परिषद के कोहिमा अनुभाग के प्रतिनिधि और स्वयं अंगामी। बाद में शिलांग में अंतिम बैठक के दौरान अपना इस्तीफा सौंप दिया, प्रस्तावों पर चर्चा की और बैठक के मिनटों पर हस्ताक्षर किए।
2. श्री खेतलुशे
बोरदोलोई रिपोर्ट को अंगामी सदस्य, केज़ेहोल ने वीटो कर दिया था, लेकिन सेमा सदस्य, खेतलूशे ने इसे स्वीकार कर लिया। खेतलूशे ने केज़ेहोल का स्थान लिया, जब केज़ेहोल ने उपसमिति की अंतिम बैठक के दौरान इस्तीफा दे दिया।
3. टी अलीबा इम्टी
मयांग नोक्चा की जगह पर में अलीबा इम्ती ने ले ली। वह उत्तर-पूर्व सीमांत (असम) जनजातीय एवं बहिष्कृत क्षेत्र उप-समिति के को-एडॉप्टेड सदस्य थे। बाद में भारतीय संघ के साथ रहने के लिए हस्ताक्षर करने से इनकार कर, अपना इस्तीफा दे दिया।
- पाकिस्तान जाने वाले सदस्य
कद्दावर कबीलाई नेता अबदुल गफार व अब्दुल समद पाकिस्तान चले गये, व वहाँ के संविधान सभा के सदस्य बने। वे महान कबीलाई, स्वंतत्रता सेनानी, कबीलाई, महिला अधिकारों व धर्मनिरपेक्षता के समर्थक थे।
1. खान अब्दुल गफ्फार खां
इन्हें फ्रंटियर गांधी भी कहा जाता है। ये पख्तून कबीले के थे व नार्थवेस्ट फ्रंटियर का प्रतिनिधित्व करते थे। वे भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेज शासन के विरुद्ध अहिंसा के प्रयोग के लिए जाने जाते है। एक समय उनका लक्ष्य संयुक्त, स्वतन्त्र और धर्मनिरपेक्ष भारत था। देश का बटवारा होने पर उनका संबंध भारत से टूट सा गया किंतु वे देश के विभाजन से किसी प्रकार सहमत न हो सके। इसलिए पाकिस्तान से उनकी विचारधारा सर्वथा भिन्न थी। पाकिस्तान के विरूद्ध उन्होने स्वतंत्र पख्तूनिस्तान आंदोलन आजीवन जारी रखा। उन्हें वर्ष 1987 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मनित किया गया।
2. खान अब्दुलसमद खां
अब्दुल समद खान अचकजई जिन्हें आमतौर पर खान शहीद के नाम से जाना जाता है (यह उपाधि या नाम महान बाबा-ए-अफगान अब्दुल रहीम खान मंदोखाइल द्वारा दिया गया था) वह तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय प्रांत बलूचिस्तान के एक पश्तून राष्ट्रवादी और राजनीतिक नेता थे। उन्होंने अंजुमन-ए-वतन बलूचिस्तान की स्थापना की, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबद्ध थी। उन्होंने विभाजन का विरोध किया। 1954 में, पाकिस्तान के निर्माण के बाद, उन्होंने “रोर पश्तून” आंदोलन की स्थापना की, जो बाद में पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रगतिशील गठबंधन में विलय हो गया, जो नेशनल अवामी पार्टी (एनएपी) बन गया, क्योंकि वह पाकिस्तान में पश्तून एकीकृत भौगोलिक इकाई के समर्थक थे। पश्तून भूमि को बलूचिस्तान प्रांत में विलय करने के बाद बाद में अलग हो गए, जिसने पश्तून, बलूच, सिंधी, सिरैकी, बंगाली और पंजाबियों की राष्ट्रीय इकाइयां बनाने के लिए एनएपी घोषणापत्र का उल्लंघन किया।
“उन्होंने अपने जीवन के आखिरी चार साल (1969-1973), जेल से बाहर बिताए, जो उनके राजनीतिक जीवन का सबसे लंबा समय था, सार्वभौमिक मताधिकार, बलूचिस्तान में एक-व्यक्ति एक-वोट और जनजातीय क्षेत्रों में संघर्ष किया जहां केवल आधिकारिक जिरगा के सदस्य थे। वोट देने के हकदार थे”। अब्दुल समद खान अचकजई समानता में विश्वास करते थे, महिला अधिकारों के कट्टर समर्थक थे, और 1970 में आम चुनाव के लिए महिला मतदाता पंजीकरण के लिए वर्जनाओं को चुनौती दी थी। दिसंबर 1973 में उनकी हत्या के समय वह बलूचिस्तान प्रांतीय विधानसभा के सदस्य थे।
- संविधान सभा, आदिवासी व कुछ तथ्य
• आजाद भारत के संविधानसभा में कुल 15 सदस्य थे, जिनमें से 9 चुनकर, 4 को-एडॉप्टेड व 1 रियासत के प्रतिनिधि के तौर पर नामांकित हुये
• बंटवारे के बाद 2 सदस्य, जो पख्तून-नार्थवेस्ट फ्रंटियर व बलुचिस्तान प्रांत के थे, वे पाकिस्तान चले गये
• डंंबेर सिंह गुरुंग इकलौते गुरुखा थे, जो अनुसूचित जनजाति न होते हुये एक्सक्लुडेड एरिया के सदस्य थे, दार्जिलिंग क्षेत्र के लिये
• स्नेह कुमार चकमा, चकमा समुदाय, चिट्टागोंग आदिवासी क्षेत्र(अब बांग्लादेश) के प्रतिनिधि थे पर भारत संघ में चाहते हुये भी शामिल न हो सकी, सरकार की लापरवाहियों के कारण
• संविधान सभा में आदिवासियों के सबसे बड़े पैराकर बनकर जयपाल सिंह मुंडा उभरे, जिन्होंने वोट अधिकार, संवैधानिक अधिकारों व आरक्षण की लड़ाई लड़ी
जोहार।
Source
- Significant achievement on indo-naga issue under lt T aliba imti, 1st president of NNC. MorungExpress. (n.d.). https://morungexpress.com/significant-achievement-indo-naga-issue-under-lt-t-aliba-imti-1st-president-nnc.
- Prabhat Khabar Digital Desk. (2018, January 26). झारखंड के सपूत बोनीफास लकड़ा थे संविधान सभा के सदस्य, आदिवासियों के अधिकारों को संविधान में दिलायी जगह. Prabhat Khabar. https://www.prabhatkhabar.com/state/jharkhand/ranchi/1116424.
- Constituent Assembly Debates (Proceedings), 9th December,1946 to 24th January,1950.
- खान, तालिमंद (1 जनवरी 2016)। “सीमांत से योद्धा” । द फ्राइडे टाइम्स.
- “The only Pakistani to receive Bharat Ratna, many foreign names are in the list!”, Daily Newspaper. Online Access date 26 January 2024.
Contribution: @sudheer-shah (Anthropology Student)