आदिवासी महिलाओं के स्वास्थ्य समर्थन की पहल: जागरूकता, स्वच्छता और परंपरागत स्वास्थ्य सुरक्षा पर पांच सत्रों का सार

आदिवासी महिला स्वास्थ्य समर्थन के तहत, हमने पाँच सत्रों में महिलाओं के स्वास्थ्य, स्वच्छता और जागरूकता से संबंधित महत्वपूर्ण विषयों पर गहन चर्चा की है। इस लेख में हम इन सत्रों के प्रमुख पहलुओं और उनके परिणामों का संपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं।

सत्र 1: स्वास्थ्य और स्वच्छता पर परिचर्चा – आदिवासी महिलाओं की जागरूकता

पहला सत्र नीतू जी और अंजली जी के संवाद से शुरू हुआ, जिसमें माहवारी से संबंधित विषयों पर चर्चा की गई। हमने माहवारी के दौरान रक्त का रंग, सफेद पानी के रंग, PCOD और PCOS जैसे स्वास्थ्य समस्याओं पर चर्चा की। माहवारी की सही ट्रैकिंग और खतरे की घंटियों को समझने में महिलाओं को मार्गदर्शन दिया गया।

सत्र के दौरान, हमने माहवारी से जुड़े स्थानीय नामों पर भी चर्चा की, जैसे “पोला,” “बरवा,” “महीना,” आदि। इससे यह पता चला कि माहवारी से जुड़े अनेक नाम विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग होते हैं। आदिवासी समाज में माहवारी को स्वाभिमान और अभिमान के रूप में मनाने के तरीके भी सांझा किए गए।

सत्र 2: स्वास्थ्य की पुनर्स्थापना – पारंपरिक खानपान और आदिवासी महिलाओं की स्वास्थ्य सुरक्षा

दूसरे सत्र में गीतिका जी और मधु जी ने मासिक चक्र के विभिन्न चरणों पर चर्चा की। पारंपरिक खानपान, जिसमें मोटा अनाज, कंद, जंगली साग-सब्जियाँ, फल, दाल, मांस-मछली, पारंपरिक पेय और डेयरी उत्पाद शामिल हैं, पर जोर दिया गया। भोजन को संरक्षित करने के पारंपरिक तरीकों जैसे सुखाने, धूम्रपान, और तेल या नमक का उपयोग करना भी समझाया गया।

सत्र के दौरान जंक फूड के नकारात्मक प्रभावों पर भी चर्चा हुई, जिनसे मोटापा, हार्मोनल असंतुलन, और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। प्रतिभागियों ने सुझाव दिया कि आयरन के अवशोषण के लिए विटामिन सी का सेवन आवश्यक है।

सत्र 3: माहवारी स्वच्छता, स्वास्थ्य जागरूकता और आहार

तीसरे सत्र की शुरुआत नीतू साक्षी जी के सवाल से हुई, जिसमें पहली माहवारी के अनुभव और माहवारी के दौरान छुट्टी की आवश्यकता पर चर्चा की गई। इसके बाद खगेश्वरी जी ने माहवारी के दौरान अनुभव साझा किए।

कल्याणी मडावी ने मासिक चक्र से संबंधित पाँच प्रमुख हार्मोन (एस्ट्रोजन, फॉलिकल स्टीमुलेटिंग, गोनाडोट्रोपिन रिलीजिंग, ल्यूटिनाइजिंग, प्रोजेस्टेरोन) और मासिक चक्र के चार चरणों (मेंस्ट्रुअल, फॉलिकुलर, ओव्युलेशन, ल्यूटियल) की विस्तृत जानकारी दी। इस सत्र में माहवारी से जुड़ी समस्याओं, जैसे एक महीने में दो बार माहवारी, जानकारी की कमी और माहवारी की उम्र पर भी चर्चा हुई।

session 3

सत्र 4: महिला स्वास्थ्य जागरूकता – निजी अंगों की देखभाल और संक्रमण से बचाव

चौथे सत्र की शुरुआत गीतिका जी ने पिछले सत्र की चर्चा से की और अंजली जी ने इस सत्र के विषयों पर चर्चा की। इस सत्र में बरसात के दिनों में होने वाले संक्रमणों से बचने के तरीकों पर गहन विचार-विमर्श हुआ। नीम के पत्तों का उपयोग, गुनगुने पानी से सफाई, और दही और मौसमी फलों का आहार में शामिल करना जैसे सुझाव दिए गए।

लता सिदार जी ने माहवारी के दौरान सही कपड़े के उपयोग पर चर्चा की। कल्याणी जी ने कपड़े को उबालकर और धूप में सुखाने की विधि बताई, जो कि हमारी पूर्वजों द्वारा उपयोग में लाई जाती थी। कृष्णा माँझी दीदी ने निजी अंगों की सफाई के बारे में महत्वपूर्ण बातें बताईं, जैसे कि यूरिन के बाद पानी से धोना और कॉटन के कपड़े का उपयोग करना।

सत्र के अंत में महिलाओं ने इस प्रकार की चर्चाओं के महत्व पर जोर दिया और साझा किया कि इस सत्र ने उन्हें अपने स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात करने का मौका दिया।

सत्र 5: आदिवासी महिला स्वास्थ्य चर्चा – आपके सवाल, हमारे जवाब

पाँचवें सत्र में सवाल-जवाब पर विशेष ध्यान दिया गया। इसमें दो मुख्य प्रश्न उठाए गए – पहला, छोटी बहन के साथ कैसे घुल-मिलें ताकि वह अपनी समस्याओं को साझा कर सके। इसके समाधान के रूप में कहा गया कि छोटी कहानियों और व्यक्तिगत अनुभवों से जुड़े उदाहरण देकर बातचीत शुरू करनी चाहिए।

दूसरा प्रश्न था कि अगर घर में माँ न हो और सभी पुरुष ही हों, तो बेटी के साथ स्वास्थ्य और माहवारी के बारे में कैसे बात की जाए। इसका उत्तर था कि पिता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, और उन्हें अपनी बेटी के साथ भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखना चाहिए। साथ ही, आस-पास की महिलाओं से भी बेटी को मार्गदर्शन दिलाने की कोशिश करनी चाहिए।

सत्रों का समग्र प्रभाव और निष्कर्ष

इन पाँच सत्रों के माध्यम से आदिवासी महिलाओं को अपने स्वास्थ्य, स्वच्छता और जागरूकता के बारे में न केवल जानकारी मिली, बल्कि उन्होंने खुलकर अपनी समस्याओं को साझा करने और उनका समाधान प्राप्त करने का साहस भी पाया। इन सत्रों का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना था, जो कि सफल रहा।

महिलाओं ने न केवल मासिक चक्र और उससे संबंधित शारीरिक प्रक्रियाओं को समझा, बल्कि पारंपरिक खानपान और स्वास्थ्य सुरक्षा के महत्व को भी स्वीकार किया। इन चर्चाओं के माध्यम से उन्हें संक्रमण से बचाव, निजी अंगों की देखभाल, और माहवारी के दौरान स्वच्छता के महत्व के बारे में जानकारी मिली।

आदिवासी महिला स्वास्थ्य समर्थन के यह पाँच सत्र महिलाओं के लिए जीवन में स्वास्थ्य और स्वच्छता को प्राथमिकता देने का एक मजबूत आधार बन गए हैं। भविष्य में भी ऐसे सत्रों का आयोजन करते हुए हम महिलाओं को उनके स्वास्थ्य के प्रति और भी जागरूक बनाने के लिए प्रयासरत रहेंगे।

Summary of 3rd session

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