देश की पहली आदिवासी महिला राज्यपाल: उर्मिला सिंह गोंड
वह सरल, शालीन एवं नेकदिल, शांत और कर्मठ स्वभाव की थीं।
उर्मिला सिंह मरकाम जी का जन्म 6 अगस्त 1946 को फिंगेश्वर रियासत में गोंडवाना के स्वतंत्रता सेनानियों और समाज सुधारकों के परिवार में हुआ। आप शहीद राजा नटवर सिंह की पोती हैं, जिन्हें अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। परिवार के अन्य सदस्यों को निर्वासन में कालापानी (अंडमान-निकोबार) भेज दिया गया।
उर्मिला की शादी छोटी उम्र में ही सरायपल्ली रियासत के राजकुमार बिरेन्द्र बहादुर सिंह से हो गई। उनके एक पुत्री और दो पुत्र हैं। उर्मिला ने अपने आपको परिवारिक कार्यों में लगा दिया। बिरेन्द्र कुमार कांग्रेस पार्टी के सदस्य बन गए और अपने परिवार की पुरानी सीट से चुनाव जीतकर मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य बने। कुछ सालों बाद बिरेन्द्र बहादुर की अचानक मौत हो जाने के कारण उर्मिला राजनीति में आ गईं।
राजनीतिक कैरियर
भले ही उर्मिला सिंह ने कानून की शिक्षा प्राप्त की थी, लेकिन साधारण गृहिणी थी और पति की असमय मृत्यु होने के बाद कांग्रेस पार्टी के आग्रह के बाद राजनीति में उतरी और एक नहीं कई बार विधायक रहने के साथ-साथ मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी रहीं। वर्ष 1985 में, उर्मिला सिंह मध्य प्रदेश विधानसभा घनसौर, सिवनी के लिए निर्वाचित हुई थीं। उर्मिला सिंह वर्ष 1990 में पुनः चुनी गई थी और वर्ष 2003 तक विधायक रहीं। इसी अवधि के दौरान, उर्मिला सिंह मध्य प्रदेश सरकार में दो बार मंत्री बनीं। सबसे पहले वर्ष 1993 में, उर्मिला सिंह को वित्त और डेयरी विकास राज्य मंत्री का पद दिया गया था, जहाँ पर उर्मिला सिंह ने वर्ष 1995 तक सेवा की। उसके बाद उर्मिला सिंह को वर्ष 1998 में, समाज कल्याण और जनजातीय कल्याण मंत्री का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था, जहाँ पर उन्होंने वर्ष 2003 तक कार्यभार संभाला। 1996 में इन्हें मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
सदियों से शोषण और उत्पीड़न झेलते आ रहे आदिवासी समाज को शिक्षा के साधन उपलब्ध करवाने और उन्हें मुख्यधारा में लाने के उर्मिला जी के प्रयास सराहनीय हैं। वर्ष 2007 में, भारत सरकार ने उर्मिला सिंह को भारतीय अनुसूचित जनजाति आयोग की पहली महिला अध्यक्ष के बनाया।
2001 में मध्य प्रदेश के बंटवारे के बाद वे छत्तीसगढ़ चली गईं और उनका संसदीय क्षेत्र व विधानसभा सीट भी नए राज्य में चली गई। इसके बाद उर्मिला छत्तीसगढ़ राज्य की पहली विधानसभा की सदस्य बनीं। 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बुरी तरह हारी जिसमें उर्मिला की हार भी शामिल थी। 2008 के विधानसभा चुनाव में भी उर्मिला हार गईं। उर्मिला इसके बाद मप्र तथा चण्डीगढ़ राज्य के कई विश्वविद्यालयों की कुलपति बनीं।
शालीन और कर्मठ राज्यपाल
उर्मिला सिंह ने 25 जनवरी 2010 को हिमाचल प्रदेश की प्रथम महिला राज्यपाल का पद ग्रहण किया था। वह देश की पहली आदिवासी(गोंड) महिला राज्यपाल थी। राज्यपाल के रूप में उर्मिला सिंह ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में कुलपति का पद ग्रहण किया। उर्मिला सिंह हिमाचल में डॉ. वाई एस परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री और जेपी विश्वविद्यालय ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी दोनों की कुलपति (चांसलर) रही हैं। इसके अलावा, उर्मिला सिंह भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी और बाल कल्याण के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य परिषद की अध्यक्ष रही हैं।
वह लाव लश्कर की परवाह और न दफ्तरी औपचारिकताएं…! ऐसी थीं हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल रह चुकी उर्मिला सिंह। उर्मिला सिंह को पुलिस की मौजूदगी नापसंद थी। राजभवन में आने वाले उनकी सादगी पर हैरान होते थे। राज्यपाल रहते हुए वह चाहती थी कि राज्य पर्यटन में अपना मुकाम बनाए। उनके कार्यकाल के दौरान प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस की सरकारें रही। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल उनसे अकसर मिलने के लिए आते थे। वीरभद्र सिंह से भी उनके संबंध मधुर रहे। सरकार की किसी फाइल को अधिक समय तक नहीं रखती थी। तुरंत हस्ताक्षर किए और फाइल वापस। रोचक बात यह है कि सरकार को किसी प्रकार का सुझाव देना भी होता था तो स्वयं पहले ही कह देती थी। फाइल पर किसी प्रकार का सुझाव लिखना उचित नहीं समझती थी।
उन्होंने 24 जनवरी 2015 को अपना कार्यकाल पूरा किया, ऐसा करने वाली हिमाचल की पहली महिला राज्यपाल बनीं। वह राज्य में अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों की व्यवस्थापिका भी हैं।
उर्मिला सिंह मध्यप्रदेश के कई सामाजिक स्वैच्छिक संगठनों से जुड़ी रही हैं। वह केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की सदस्य के साथ अनुसूचित जाति कल्याण सलाहकार समिति की सदस्य थीं। इसके अलावा उर्मिला सिंह उज्जैन नागरिक फोरम की संस्थापक अध्यक्ष और आदिवासी महिलाओं के लिए सांसद संगठन की अध्यक्ष रही हैं।
मृत्यु
उर्मिला सिंह का 71 वर्ष की आयु में 29 मई 2018 को निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, वह मस्तिष्क संबंधी जटिलताओं से पीड़ित थीं। क्षेत्र के लोग उर्मिल सिंह को प्यार से बाई, दीदी, बुआ कहकर संबोधित करते थे। अपनी सरलता और मृदुभाषिता से वे मिलने वाले व्यक्ति को पहली मुलाकात में ही प्रभावित कर लेती हैं। कठिन से कठिन समय में भी उनके चेहरे पर मुस्कान बनी रहती है।
जय गोंडवाना
संदर्भ व स्रोत
http://himachalrajbhavan.nic.in/Governor_designate.html